शब्द में अर्थ को स्पष्ट करने वाले कार्य व्यापार या साधन 'शब्द शक्ति' कहलाती है।
उदाहरण– 'गिरा अरथ जल वीचि सम'
उक्त पंक्ति से स्पष्ट है कि जिस प्रकार जल में लहर रहती है उसी प्रकार शब्द में अर्थ समाहित हैं।
शब्द वही है, जिसमें कि अर्थ बोध कराने की शक्ति हो। काव्य शब्द और अर्थ का समन्वित रूप है क्योंकि अर्थ काव्य की आत्मा है, तो शब्द उसका शरीर है।
शब्द तीन प्रकार के होते हैं
1. वाचक शब्द - जब शब्द से वाच्यार्थ अर्थात उस शब्द का प्रचलित अर्थ निकले वाचक शब्द कहलाता है।
2. लक्षक शब्द - जब किसी शब्द से लक्ष्यार्थ अर्थात मुख्यार्थ से हटकर भिन्न अर्थ लक्षित हो तो लक्षक शब्द कहलाते हैं।
3. व्यंजक शब्द - जब किसी शब्द से व्यंग्यार्थ (ध्वनित) अर्थ निकले तो व्यंजक शब्द कहलाते हैं।
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इन्हीं आधार को लेकर शब्द शक्ति तीन प्रकार की होती हैं -
1. अभिधा शब्द शक्ति- जिस शब्द शक्ति से प्रचलित अर्थ का बोध हो, उसे अभिधा शब्द शक्ति कहते हैं–
जैसे- दिवस का अवसान समीप था।
(यहाँ - दिवस का अर्थ दिन है)
2. लक्षणा शब्द शक्ति- इसमें वाच्यार्थ को छोड़कर इससे संबंधित रुढ़ि या किसी प्रयोजन से अर्थ स्पष्ट होता है।
जैसे– क. पंकज के फूल ले आओ। (यहाँ पंकज का अर्थ कमल से है, जो रूढ़ अर्थ है)
ख. पेट में चूहे कूद रहे हैं। (चूहे कूदना का यहाँ प्रयोजन भूख लगने से है।)
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3. व्यंजना शब्द शक्ति - जहाँ गूढार्थ/ व्यंग्यार्थ ध्वनित हो वहाँ व्यंजना शब्द शक्ति होती है।
जैसे- नंद बृज लीजे ठोकि बजाय, इस पंक्ति में अर्थ निहित है- गोपिया व्यंग भरे शब्दों में नंद को कहती हैं कि आप अपने ब्रिज को अच्छी तरह से ठोक बजा लीजिए, अतः यहाँ व्यंग्यार्थ ध्वनित है।
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आशा है, उपरोक्त जानकारी परीक्षार्थियों / विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक एवं परीक्षापयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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