प्राचीन काल में छठी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान भारत में नवीन धर्मों की उत्पत्ति हुई। इसके अन्तर्गत जैन और बौद्ध धर्म शामिल हैं। इन धर्मों की उत्पत्ति के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं–
ऋग्वैदिक काल (1500 ई.पू. से 1000 ई.पू.) के दौरान वैदिक धर्म अत्यधिक सरल और विशुद्ध था। स्तुति पाठ तथा यज्ञ सामूहिक रूप से किये जाते थे। आगे चलकर उत्तर वैदिक काल (1000 ई.पू. से 600 ई.पू.) में वैदिक धर्म में अनेक जटिलताएँ शामिल हो गयीं। धर्म पर ब्राह्मण वर्ग का अधिकार हो गया। शुद्ध एवं सरल धर्म का स्थान जटिल तथा निरर्थक कर्मकाण्डों ने ले लिया।
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वैदिक काल के ग्रन्थों की भाषा कठिन संस्कृत थी। समस्त वैदिक ग्रन्थों की रचना इसी कठिन संस्कृत भाषा में की गई थी। इस भाषा को पवित्र भाषा माना जाता था। चूँकि संस्कृत कठिन थी, अतः सभी लोग सरलता से इस भाषा का प्रयोग नहीं कर पाते थे। फलस्वरुप छठी शताब्दी ई.पू. के काल तक यह भाषा केवल विद्वानों की भाषा बनकर रह गई। सामान्य लोगों ने इस भाषा के प्रयोग को त्याग दिया। इससे समाज में धार्मिक कर्मकाण्डों को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।
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ऋग्वैदिक काल में व्यवसाय के आधार पर वर्ण व्यवस्था की गई थी। इसके अन्तर्गत व्यक्ति की योग्यता और उसके व्यवसाय के आधार पर उसकी जाति निर्धारित की जाती थी। उत्तर वैदिक काल में वर्णव्यवस्था जन्म पर आधारित हो गई। यह व्यवस्था कठोर जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। छठी शताब्दी ई.पू. के समय तक वर्ण व्यवस्था ने कठोर रूप ले लिया था।
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छठी शताब्दी ई.पू. के काल की राजनीतिक परिस्थितियाँ नवीन धर्मों की उत्पत्ति के अनुकूल थीं। भारत में मगध सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था। इसके शासक बिम्बिसार व अजातशत्रु ब्राह्मणों के प्रभाव से मुक्त थे। वे वैदिक कर्मकाण्डों को विशेष महत्व नहीं देते थे। अतः उन्होंने नवीन धर्मों की उत्पत्ति को प्रोत्साहित किया।
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मगध साम्राज्य के राजा– शिशुनाग और कालाशोक
लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान भारत में लोहे का प्रयोग प्रारम्भ हो गया था। लोहे के हथियारों से जंगलों की कटाई करके कृषियोग्य भूमि का विस्तार किया गया। फलस्वरुप बड़ी संख्या में लोग कृषि करने लगे। अतः कृषि से सम्बन्धित क्रियाओं को सम्पन्न करने के लिए पशुधन (बैलों) की माँग में वृद्धि हुई। परिणामस्वरुप वैदिक धर्म से सम्बन्धित कर्मकाण्डों में दी जाने वाली पशुबलि का विरोध किया गया।
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छठी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान बड़ी संख्या में लोग कृषि करने लगे थे। इससे उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई। फलस्वरुप व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। इससे समाज में वैश्य वर्ग के महत्त्व में वृद्धि हुई। वैश्य वर्ग ने समाज में अपनी स्थिति को सुधारने हेतु तथा व्यापार व वाणिज्य के विस्तार के लिये वैदिक धर्म की प्रथाओं का विरोध किया। ऐसा इसलिए किया क्योंकि वैदिक धर्म में ऋण पर ब्याज लेना पाप माना जाता था। अतः वैश्य वर्ग ने नवीन धर्मों के उत्पत्ति को प्रोत्साहित किया।
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
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