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एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका | कक्षा 08 || सामाजिक विज्ञान | ब्रिटिश प्रशासन, नीतियाँ और प्रभाव

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प्रश्न– दोहरा शासन प्रबन्ध से क्या आशय है?
उत्तर– बक्सर युद्ध के बाद बंगाल की शक्ति कम्पनी और बंगाल के नवाब के बीच विभक्त हो गई। इसे बंगाल का दोहरा शासन प्रबन्ध कहा जाता है।

प्रश्न– दोहरी शासन व्यवस्था से बंगाल की जनता पर क्या प्रभाव पड़ा लिखिए।
उत्तर– द्वैध शासन के कारण बंगाल की कृषि, उद्योग और व्यापार सभी कुछ नष्ट होते गए। साधारण जनता दरिद्रता और कम्पनी के अत्याचारों से पीड़ित थी। ऐसी स्थिति में हा-हा-कार मच गया। सन् 1772 ई. में कम्पनी द्वारा वारेन हेस्टिंग्ज को बंगाल का गवर्नर नियुक्त कर दिया गया। उसने दोहरे शासन प्रबंध की कुप्रथा को 1772 ई. में समाप्त कर दिया और निजामत तथा दीवानी के अधिकार प्रत्यक्ष रूप से अपने हाथों में ले लिए। बंगाल के नवाब का पद पूरी तरह से पेंशन का बना दिया गया।

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एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका | कक्षा 08 || सामाजिक विज्ञान | भारत में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना और विस्तार

प्रश्न– रेग्यूलेटिंग एक्ट के प्रमुख उद्देश्य क्या थे?
उत्तर– ब्रिटिश संसद ने सन् 1773 ई. में रेग्यूलेटिंग एक्ट पारित किया। इस एक्ट के दो प्रमुख उद्देश्य थे–
1. कम्पनी के संगठन के दोषों को दूर करना।
2. भारत में कम्पनी के शासन के दोषों का निराकरण करना।

प्रश्न– रेग्यूलेटिंग एक्ट में क्या-क्या प्रावधान दिए गए थे?
उत्तर– रेग्यूलेटिंग एक्ट में अनेक प्रावधान किये गये थे। इस एक्ट के द्वारा एक नया प्रशासनिक ढाँचा खड़ा किया गया। अभी तक बंगाल, मद्रास एवं बम्बई की प्रेसीडेंसी स्वतंत्र थी। इस अधिनियम द्वारा उनकी स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई। बंगाल का गवर्नर बम्बई तथा मद्रास का भी गवर्नर जनरल बना दिया गया। गवर्नर जनरल की सहायता के लिए चार सदस्यों की एक परिषद (कौंसिल) बनाई गई। गवर्नर जनरल को सैनिक तथा असैनिक शासन का स्वामी बनाया गया। इसे युद्ध एवं संधि करने के अधिकार दे दिए गए। गवर्नर जनरल और उसकी परिषद पर संचालक मण्डल का नियंत्रण रखा गया। इस अधिनियम के द्वारा कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई। एक्ट के अनुसार कम्पनी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को ऊँचा वेतन दिया जाने लगा और उनके द्वारा उपहार, भेंट आदि लेने तथा व्यक्तिगत व्यापार करने पर रोक लगा दी गई।

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2. एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका (विज्ञान) | कक्षा 08 || अध्याय 5 और 6
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प्रश्न– 'पिट का इण्डिया एक्ट' किस उद्देश्य से बनाया गया था?
उत्तर– रेग्यूलेटिंग एक्ट के दोषों को दूर करने, कम्पनी के भारतीय क्षेत्रों में प्रशासन को कुशल तथा उत्तरदायित्व पूर्ण बनाने एवं भारत स्थित कम्पनी के कार्य क्षेत्र व कार्य प्रणाली को नियंत्रित करने के उद्देश्य से सन् 1784 ई. में ब्रिटिश प्रधानमंत्री विलियम पिट ने 'पिट इण्डिया एक्ट' पारित कराया। भारत स्थित कम्पनी के कार्य क्षेत्र तथा कार्य प्रणाली आदि पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विलियम पिट ने सन् 1784 ई. में एक कानून पारित कराया जिसको पिट इण्डिया एक्ट कहा जाता है।

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4. एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका (हिन्दी) | कक्षा - 08 || पाठ 01 और 02
5. एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका (विज्ञान) | कक्षा 08 || अध्याय 1 और 2

प्रश्न– कार्नवालिस द्वारा स्थापित सिविल सर्विस व्यवस्था की प्रमुख बातें क्या थीं, लिखिए।
उत्तर– सन् 1786 ई. में लार्ड कार्नवालिस भारत में गवर्नर जनरल बनकर आया। लार्ड कार्नवालिस को भारत में सिविल सर्विस की स्थापना का जनक कहा जाता है। लार्ड कार्नवालिस ने शासन से भारतीयों को विधिवत दूर रखने की नीति अपनाई थी। ब्रिटेन के युवा सिविल सर्विस की ओर अधिक आकर्षित थे। सिविल सर्विस सदस्यों की नियुक्ति सन् 1833 ई. तक निदेशकों द्वारा की जाती थी। उसके बाद प्रतियोगी परीक्षा शुरू की गई। कम्पनी पर शासन करने का दायित्व बढ़ता जा रहा था। साथ ही उनका भारतीय रीति-रिवाज और संस्कृति से परिचित होना भी जरूरी हो गया था। अतः कलकत्ता में फोर्ट-विलियम कॉलेज की स्थापना सन् 1801 ई. में की गई थी। इसके माध्यम से सिविल सर्विस के सदस्यों को प्रशिक्षण दिया जाता था। कुछ समय बाद प्रशिक्षण के लिए ब्रिटेन में ईस्ट इण्डिया कॉलेज की स्थापना हुई।

प्रश्न– ब्रिटिश आर्थिक नीतियों का भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा, लिखिए।
उत्तर– भारत में कम्पनी के शासन की स्थापना के साथ ही अंग्रेजों ने समय-समय पर नई-नई आर्थिक नीतियाँ अपनाई थीं। इन आर्थिक नीतियों के कारण व्यापार वाणिज्य, उद्योग-धंधों तथा भू-राजस्व प्रणाली और कृषि व्यवस्था में अनेक बदलाव आये थे। अंग्रेजों ने अपने हितों में जो नीतियाँ अपनाई थीं, उनसे भारतीय अर्थव्यवस्था का परम्परागत ढाँचा चरमरा गया। भारतीय कृषि, उद्योग तथा व्यापार पर ब्रिटिश की आर्थिक नीतियों का अत्यन्त बुरा प्रभाव पड़ा।

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प्रश्न– स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था से क्या आशय है, इसका किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर– सन् 1793 ई. में कार्नवालिस ने कंपनी की आय बढ़ाने तथा उसमें स्थिरता लाने के लिए बंगाल, उड़ीसा व बिहार में स्थायी बंदोबस्त लागू किया। इस व्यवस्था में जमींदारों को भू-स्वामी मान लिया गया। भूमि पर उनका वंशानुगत अधिकार हो गया था। चेन्नई और मुम्बई क्षेत्र में रैय्यतवाड़ी व्यवस्था लागू की गई। इसमें भूमि जोतने वाले को भू-स्वामी माना गया। इनसे कंपनी सीधे कर लेती थी। लगान न देने पर किसानों का भूमि से अधिकार समाप्त कर दिया जाता था। इस व्यवस्था से कृषि का उत्पादन बहुत घट गया, किसानों पर अत्याचार बढ़ गए, किन्तु सरकारी राजस्व में भारी वृद्धि हुई। अवध क्षेत्र में महालवाड़ी व्यवस्था लागू की गई। यह जमींदारी व्यवस्था का सुधरा रूप था। इस व्यवस्था में प्रत्येक महाल (गाँव) के लिए कर निश्चित किया गया। स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था से अंग्रेजी सरकार को हानि भी उठानी पड़ी क्योंकि जमींदार किसानों से मनमाना लगान वसूलते थे, किन्तु वे एक निश्चित मात्रा में ही ब्रिटिश शासन को लगान की राशि देते थे। रैयतवाड़ी व्यवस्था में प्रत्येक कृषक, जो जमीन जोत रहा था, उसे उस जमीन का भू-स्वामी मानकर उसके साथ लगान की शर्तें तय की जाती थीं। महालवाड़ी व्यवस्था में किसान का भूमि पर अधिकार नहीं रहता था।

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प्रश्न– परिवहन एवं दूरसंचार व्यवस्था से ब्रिटिश सरकार को क्या लाभ हुए?
उत्तर– यातायात व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए रेल एवं सड़क मार्गों का विकास किया गया। साथ ही डाक-तार (संचार) सुविधाओं का भी विकास किया गया। विलियम बेंटिक और डलहौजी ने अनेक सड़कों की मरम्मत का कार्य कराया। भारत के प्रमुख व्यापारिक केन्द्र सड़कों एवं बंदरगाहों से जोड़े गए। नदियों के माध्यम से यातायात एवं व्यापार को बढ़ाने के लिए नावें चलाई गई। डलहौजी ने आधुनिक डाक तार (संचार) व्यवस्था को शुरु कराया। उसने पहली बार डाक टिकिट जारी कराए। उसी के प्रयासों से पहली बार टेलीग्राफ लाइन कलकत्ता से आगरा तक डाली गई थी। इस व्यवस्था का लाभ अंग्रेजी सरकार को अत्यधिक मिला। परिवहन और संचार के साधनों में हुए सुधारों से भारत को ब्रिटिश वस्तुओं का बाजार और ब्रिटिश उद्योगों के लिए कच्चे माल को प्राप्त करने, सैनिक सामग्री व सैनिकों को कम समय में एक स्थान से दूसरे स्थान में भेजने में आसानी हुई। परिवहन के क्षेत्र में रेल व्यवस्था के भी क्रांतिकारी परिणाम निकले। भारत में पहली रेलगाड़ी सन् 1853 ई. में बम्बई और थाना के बीच चलाई गई।

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प्रश्न– ब्रिटिश सरकार द्वारा यूरोपीय साहित्य और ज्ञान-विज्ञान शिक्षण के लिए क्या-क्या प्रबंध किए गए थे?
उत्तर– सन् 1835 ई. में सरकार ने भारतीयों को यूरोपीय साहित्य और ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा देने का निर्णय लिया। इसके तहत अंग्रेजी सरकार द्वारा खोले गए कुछ स्कूलों में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया। धीरे-धीरे शिक्षा का प्रसार भारत में बढ़ता गया। कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। पश्चिमी शिक्षा के प्रसार के फलस्वरूप भारत में शिक्षित मध्यम वर्ग का उदय हुआ। इस कारण कम्पनी की नौकरियों में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त भारतीयों को अवसर मिला। अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त भारतीयों और शेष भारतीयों के बीच दूरियाँ बढ़ती गईं। अंग्रेजी के सम्पर्क में आने से भारतीय आधुनिक शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान, स्वतन्त्रता, समानता, जनतंत्र, राष्ट्रीयता, विशिष्ट क्रांतियाँ और आधुनिक विचारों के सम्पर्क में आए। छापाखाना और संचार माध्यमों में आए परिवर्तन के चलते उन्हें विश्व में हो रहे प्रमुख घटनाक्रमों, आविष्कारों एवं जनविकास की योजनाओं से परिचित होने के अवसर मिले।

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfcompetiton.com

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