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रावरे दोषु न पायन को – गोस्वामी तुलसीदास

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केवट प्रसंग

रावरे दोषु न पायन को, पगधूरिको भूरि प्रभाउ महा है।
पाहन तें बन-बाहनु काठको कोमल है, जलु खाइ रहा है।।
पावन पाय पखारि कै नाव चढ़ाइहौं, आयसु होत कहा है।
तुलसी सुनि केवट के बर बैन हँसे प्रभु जानकी ओर हहा है।।

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शब्दार्थ

रावरे- आपके, पायन- पैरों, पगधूरिको- पैरों की धूल, भूरि- बहुत अधिक, पाहन- पत्थर, काठ को- लकड़ी का, पावन- पवित्र, पखारि- धोकर, आयसु- आज्ञा, बर बैन- श्रेष्ठ वचन, जानकी- देवी सीता।

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सन्दर्भ

प्रस्तुत पद 'केवट प्रसंग' नामक शीर्षक से लिया गया है। इसकी रचना 'गोस्वामी तुलसीदास' ने की है।

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प्रसंग

प्रस्तुत पद में केवट भगवान श्री राम से पैर धुलवाने का आग्रह कर रहा है। पैर धुलवाने के बाद ही वह प्रभु को अपनी नाव में बैठाना चाहता है।

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व्याख्या

केवट भगवान श्री राम से कहता है कि हे प्रभु! आपके पैरों का कोई दोष नहीं है, किन्तु आपके पैरों की धूल अत्यन्त प्रभावशाली है। आपके चरणों की धूल का स्पर्श पाकर एक पत्थर नारी के रूप में परिवर्तित हो गया था। उस पत्थर की तुलना में, मेरी नाव तो बहुत कोमल है और लकड़ी की बनी हुई है। इस पर यह पानी में पड़ी गल रही है। आपके पैरों की धूल का स्पर्श पाकर मेरी नाव तुरन्त ही किसी अन्य रूप में परिवर्तित हो सकती है। अतः मैं आपके पवित्र चरण कमलों को धोकर ही, आपको नाव में बैठाऊँगा। इससे मेरे मन में कोई भय नहीं रहेगा। अतः हे प्रभु! आप मुझे अपने चरण कमलों को धोने देने की आज्ञा प्रदान करें। तुलसीदास जी कहते हैं कि केवट के चतुराई भरे श्रेष्ठ वचनों को सुनकर, प्रभु श्री राम देवी सीता की ओर देखकर मुसकुरा दये।

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काव्य सौन्दर्य

प्रस्तुत पद से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं–
1. भावानुरूप साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
2. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
3. केवट की वाक्-पटुता का अंकन किया गया है।
4. केवट की भक्ति भावना को प्रस्तुत किया गया है।
5. भगवान श्री राम के चरणों की धूल का स्पर्श पाकर शिला अहिल्या नारी के रूप में परिवर्तित हो गई थी।
6. पद-मैत्री का प्रयोग किया गया है।
7. प्रस्तुत पद में सामाजिक समरसता के भाव प्रकट किये गए हैं।
8. पौराणिक गाथाओं से सम्बद्ध पद है।

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfcompetiton.com

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