s
By: RF Competition   Copy   Share  (133) 

बाल्हा मैं बैरागिण हूँगी हो– मीराबाई

1209

"मीरा के पद"

बाल्हा मैं बैरागिण हूँगी हो।
जो-जो भेष म्हाँरो साहिब रीझै, सोइ सोइ भेष धरूँगी, हो।
सील संतोष धरूँ घट भीतर, समता पकड़ रहूँगी, हो।
जाको नाम निरजण कहिये, ताको ध्यान धरूँगी, हो।
गुरु, ज्ञान रंगू, तन कपड़ा, मन मुद्रा पेरुँगी, हो।
प्रेम प्रीत सूँ हरि गुण गाऊँ, चरणन लिपट रहूँगी, हो।
यातन की मैं करूँ कीगरी; रसना राम रटूँगी, हो।
मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर, साधाँ संग रहूँगी, हो।

हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
बीती विभावरी जाग री― जयशंकर प्रसाद

संदर्भ

प्रस्तुत पद्यांश 'मीरा के पद' नामक शीर्षक से लिया गया है। इसकी रचयिता कवयित्री 'मीराबाई' हैं।

हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
मैया मैं नाहीं दधि खायो― सूरदास

प्रसंग

प्रस्तुत पद्यांश में मीराबाई ने अपने प्रियतम प्रभु श्री कृष्ण के प्रति समर्पित भाव व्यक्त किया है। वे श्री कृष्ण को प्रसन्न करना चाहती हैं।

हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
मैया कबहिं बढ़ैगी चोटी― सूरदास

महत्वपूर्ण शब्द

बाल्हा- स्वामी, बैरागिण- संन्यासिनी, म्हाँरो- हमारे, साहिब- स्वामी, रीझै- प्रसन्न होंगे, सील- शालीनता, घट- हृदय, निरजण- निरंजन, मुद्रा- नाम खुदी हुई अगूँठी, कीगरी- तंतुवाद्य, रसना- जीभ, साधाँ- साधुओं के।

हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ― केशवदास

व्याख्या

मीराबाई कहती हैं की हे स्वामी श्री कृष्ण! मैं संन्यासिनी बन जाऊँगी। वे कहती हैं कि जिस भेष को धारण करने से मेरे स्वामी प्रसन्न होंगे, मैं वैसा ही भेष धारण करूँगी। मैं शालीनता और संतोष को अपने हृदय के भीतर धारण करूँगी और संसार के सभी लोगों के प्रति समानता का भाव रखूँगी। जिस प्रभु का नाम निरंजन (निर्दोष) है, मैं उन्हीं का ध्यान करूँगी। मैं गुरु के ज्ञान में रंग जाऊँगी अर्थात् गुरु के ज्ञान रूपी वस्त्रों को धारण करूँगी। मैं अपने मन में स्वामी श्री कृष्ण का ध्यान करूँगी। मैं प्रेम के साथ भगवान श्री हरि अर्थात् श्री कृष्ण के गुणों का गान करूँगी और उनके चरणों से लिपटी रहूँगी। मैं अपने शरीर को तंतुवाद्य बना लूँगी और अपनी जीभ से राम-राम रटते रहूँगी और श्री कृष्ण की आराधना करूँगी। मीरा कहती हैं कि हे गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले प्रभु श्री कृष्ण! मैं साधुओं के संग रहूँगी और आपकी भक्ति करनी करूँगी।

हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायो― सूरदास

काव्य-सौंदर्य

1. प्रस्तुत पद्यांश में मीराबाई अपने प्रभु श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए तत्पर है।
2. अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश और रूपक अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
3. शांत रस और माधुर्य गुण की शोभा देखने योग्य है।
4. राजस्थानी भाषा के शब्दों से युक्त ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है। बाल्हा, बैरागिण, म्हाँरो और निरजण आदि राजस्थानी भाषा के शब्द हैं।
5. छंद पद का सटीकता के साथ प्रयोग किया गया है।

हिन्दी के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
मो देखत जसुमति तेरे ढोटा, अबहिं माटी खाई― सूरदास

आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
धन्यवाद।
R F Temre
rfcompetition.com



I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfcompetiton.com

Comments

POST YOUR COMMENT

Categories

Subcribe